Sugarcane Crop कृषि वैज्ञानिकों ने दिया सुझाव
गन्ना एक प्रमुख व्यावसायिक फसल है, जो देश के कई हिस्सों में उगाई जाती है. मॉनसून के मौसम में गन्ने की खेती के लिए विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है, ताकि फसल अच्छी हो और पैदावार बढ़े. इसलिए जरूरी है कृषि वैज्ञानिकों के सुझावों को अपनाकर गन्ने की फसल को बरसात के मौसम में सुरक्षित और स्वस्थ रखें, जिससे गन्ने की पैदावार और फसल की गुणवत्ता दोनों बढ़ सके.
देश में गन्ना एक अहम व्यावसायिक फसल है. मॉनसून के आते ही गन्ना किसानों की चिंताएं बढ़ जाती हैं, क्योंकि उनके सामने सबसे बड़ी समस्या गन्ने का गिरना, गन्ने का पीला पड़ना और कीट रोगों का प्रकोप बढ़ने की होती है. कृषि विज्ञान केंद्र नरकटियागंज, पश्चिम चंपारण बिहार के प्रमुख डॉ. आर.पी. सिंह ने जुलाई माह में गन्ना किसानों को जरूरी तकनीकी सलाह दी.
उन्होंने बताया कि देश में गन्ने की खेती बसंत और सर्दी के मौसम में की जाती है. देश में मॉनसून की दस्तक के साथ जहां लोगों को गर्मी से राहत मिलती है, वहीं गन्ना किसानों के लिए यह बारिश वरदान साबित हो सकती है. बस जरूरी है कि इस बरसात के सीजन में गन्ने की फसल में आवश्यक काम और कीट-रोगों से बचाव के उपाय अपनाए जाएं.
फसल की अच्छी बढ़वार के लिए जरूरी काम
डॉ. आर. पी. सिंह ने बताया कि देर से बोई गई बसंतकालीन गन्ने के तेजी से बढ़ने के लिए टॉप ड्रेसिंग करने का यह बहुत अच्छा समय है. इसके लिए किसानों को बारिश के बाद गन्ने की फसल में बुवाई के बाद बची यूरिया की आधी मात्रा यानी 40 से 45 किग्रा प्रति एकड़ की दर से यूरिया की टॉप ड्रेसिंग खड़ी फसल में करनी चाहिए. जिन किसानों ने यूरिया की टॉप ड्रेसिंग कर ली है, वे किसान पानी में घुलने वाला उर्वरक 18:18:18 के 2 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से 200 लीटर पानी में घोल बनाकर गन्ने की फसल में छिड़काव करें. गन्ने की फसल में संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए.
गन्ने की जलवायु अनुकूल और जैव-सशक्त किस्में
चीनी और गुड़ की मांग को पूरा करने के लिए अधिक गन्ना उत्पादन और अधिक चीनी प्राप्त करने वाली किस्मों की जरूरत है. देश में चीनी उद्योग तेजी से बढ़ रहा है और अब इसका उपयोग केवल चीनी और गुड़ तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि इसके इथेनॉल उत्पादन से ईंधन क्षेत्र में भी किया जा रहा है. वर्तमान में खेती की जा रही किस्म Co 238 कई समस्याओं से ग्रस्त है. इसलिए इन समस्याओं के समाधान के लिए गन्ना शोध संस्थान भी काम कर रहे हैं,
जिससे जलवायु परिवर्तन के दौर में संभावित पैदावार और चीनी उत्पादन को बढ़ाया जा सके. ICAR ने कृषि जलवायु अनुकूल और जैव-सशक्त 4 नई गन्ना किस्मों की खोज की है, जिन्हें ICAR के गन्ना अनुसंधान संस्थानों के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किया गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन नई किस्मों का विमोचन किया, जो जलवायु परिवर्तन के दौर में किसानों के लिए लाभकारी साबित होंगी
हानि से बचने के लिए ये काम जरूर करें
डॉ आर,पी. सिंह ने कहा कि जहां गन्ने में जलभराव हो, खेत से जल निकासी की व्यवस्था करनी चाहिए. दरअसल, खेत में ज्यादा पानी भरने से पौधे गलने लगते हैं. इसलिए खेत से पानी निकालने के लिए नालियां बनानी चाहिए. अगस्त से सितंबर महीने में गन्ने की फसल से सूखी पत्तियों को निकाल दें.
इससे पौधों का तेजी से विकास होगा. गन्ने में जुलाई माह में मिट्टी चढ़ाने का काम करना चाहिए. मॉनसून में बारिश को देखते हुए कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक गन्ने की फसल में मिट्टी चढ़ाने का काम समय पर कर लेना चाहिए. इस समय मिट्टी मुलायम होती है और फसल के पौधे काफी कमजोर होते हैं, जो तेज हवा चलने पर गिर जाते हैं. ऐसे में मिट्टी चढ़ाने और बंधाई करने से पौधों को मजबूती मिलती है.
बरसात में इस रोग और खरपतवार से रहें सावधान
डॉ सिंह के मुताबिक पोक्कहा बोईंग रोग तेजी से फैलता है. इसके नियंत्रण के लिए वर्षाकाल से ही किसानों को सजग रहने की जरूरत है. इसमें छोटी की कोमल पत्तियां काली होकर मुरझा जाती हैं. पत्ती का ऊपरी भाग गिर जाता है. पत्तियों के ऊपरी और निचले भाग पर पत्ती फलक के पास सिकुड़न के साथ सफेद धब्बे दिखाई देते हैं. इस रोग के स्पष्ट लक्षण विशेषकर जुलाई से सितंबर माह (बरसात के मौसम) में प्रकट होते हैं.
प्रभावित पौधों के नीचे प्यूपा की संख्या अधिक और छोटी हो जाती है. लक्षण दिखाई देने पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम/लीटर पानी की दर से घोल बनाकर 15 दिनों के अंतराल पर 2-3 बार छिड़काव करके रोग को रोका जा सकता है. कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, गन्ने की फसल में अमरबेल खरपतवार दिखाई दे तो उसे जड़ से उखाड़ कर मिट्टी में दबा दें, क्योंकि यह गन्ने की फसल की बढ़वार को प्रभावित करता है.
इन खतरनाक कीटों से रहें सतर्क
गन्ने में तना बेधक कीट का प्रकोप न हो, इसके लिए ट्राईकोग्रामा किलोनिस प्रति एकड़ की दर से 4-6 बार 10 दिनों के अंतराल पर जुलाई से अक्टूबर महीने में प्रयोग करना चाहिए. सूंडी परजीवी कार्ड, कोटेप्सिया प्लेविपस 200 प्रति एकड़ की दर से 7 दिनों के अंतराल पर जुलाई से अक्टूबर तक प्रयोग करना चाहिए. अगर तना बेधक कीट का प्रकोप हो गया है तो कीट का प्रकोप दिखाई देने पर प्रोफेनोफास 40% + सायपरमेथ्रिन 4% ई.सी. या ट्राईजोफास 35% डेल्टामेशिन 1% की मिली/लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए
PM मोदी ने गन्ना की चार जलवायु अनुकूल किस्में कीं जारी
गन्ना की नई किस्म कर्ण-17 की खासियत
कर्ण-17 एक जलवायु अनुकूल और जैव-सशक्त गन्ना किस्म है. यह हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, मध्य और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है. इस किस्म की पैदावार प्रति हेक्टेयर 91.48 टन है और यह 330 से 360 दिन में तैयार हो जाती है. इसमें चीनी की मात्रा 18.38 प्रतिशत है और यह लाल सड़न रोग के प्रति प्रतिरोधी है. यह तना छेदक, स्टलक बोरर और चोटी बेधक कीटों से भी कम प्रभावित होती है. इस किस्म को गन्ना प्रजनन संस्थान के क्षेत्रीय केंद्र करनाल के वैज्ञानिकों ने विकसित किया है.
गन्ना की किस्म कोलख 16202 के कई खास गुण
कोलख 16202 जलवायु अनुकूल और जैव-सशक्त किस्म है, जिसे भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ द्वारा विकसित किया गया है. यह किस्म अगेती है और लगभग 10 महीने में तैयार हो जाती है. इसकी पैदावार प्रति हेक्टेयर 93.2 टन है और चीनी की रिकवरी 17.74 प्रतिशत है. यह सूखे और लाल सड़न के प्रति प्रतिरोधी है. इसे हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सिंचित क्षेत्रों के लिए विकसित किया गया है.
जलभराव क्षेत्र के लिए है गन्ना की ये किस्म
कोलख 16470 एक जलवायु अनुकूल और जैव-सशक्त किस्म है, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और असम के लिए उपयुक्त है. इसकी उपज क्षमता प्रति हेक्टेयर 82.5 टन है और इसमें चीनी की मात्रा 17.37 प्रतिशत है. यह किस्म जलभराव वाले क्षेत्रों के लिए बेहतर है और लाल सड़न और स्मट रोग के प्रति प्रतिरोधी है. यह गन्ने के मुख्य कीटों के हमलों के प्रति कम संवेदनशील है.
गन्ने की किस्म CoPb 99 बेहतर क्यों है?
गन्ना की CoPb 99 किस्म एक जलवायु अनुकूल और जैव-सशक्त किस्म है, जिसे पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, लुधियाना के गन्ना शोध केंद्र कपूरथला के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किया गया है. यह जल्दी पकने वाली और अधिक उपज देने वाली किस्म है, जिसे हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सिंचित क्षेत्रों के लिए तैयार किया गया है. इसकी उपज क्षमता प्रति हेक्टेयर 90.1 टन है और चीनी की मात्रा 18.01 प्रतिशत है. यह तना छेदक और चोटी बेधक कीटों के हमलों के प्रति कम संवेदनशील है और लाल सड़न रोग के प्रति भी प्रतिरोधी है.